इस मन्त्र का प्रयोग यदि किसी भी व्यक्ति के द्वारा पूर्ण श्रद्धा एवम विश्वास के साथ त्र्यम्बक भगवान शिव की छवि का अन्त:करण से अवलोकन करते हुए किया जाए तो निश्चित ही उसे तत्काल लाभ प्राप्त होगा।
अभिमन्त्रित पानी उसारते समय अन्त: करण से इस मंत्र का जप करना चाहिए और स्वत: अथवा जनकल्याण में इसका प्रयोग वहां विशेष रूप से किया जा सकता है ।जहां पर प्राथमिक उपचार में केवल ईश्वर ही सहायक होते है जैसे यदि अचानक किसी को हार्टअटैक होने वाला है और वहां से डाक्टर के पास पहुंचने में काफी देर लग सकती है तो ऐसी दशा में व्यक्ति
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं
मंत्र का 21 बार जप करके उसका अभिमन्त्रित जल पीपल वृक्ष के निकट अथवा घर से बाहर कुछ दूरी पर डाल दे तो रोगी की तबियत तत्काल ठीक हो जाता है।
विधि –
इसकी विधि इस प्रकार हैं कि एक लोटा(जो स्टील का न हो) जल हाथ में लेकर उसमे रास्ते का पड़ा हुआ कोई भी एक कंकड़ उस जल से भरे हुए लोटे में डालकर रोग से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर से 21 बार उसार कर उसमे पड़ा हुआ कंकड़ निकाल कर बाहर फेक दें और उसका जल पीपल के वृक्ष पर अर्पण कर दे। रोगों को तत्काल लाभ होगा ।
इसके अलावा एकाएक आक्रांत हुए बालकों जैसे बुखार आदि से ग्रसित हो जानें पर अथवा दवा इत्यादि की तत्काल व्यवस्था न होने पर एक लोटा जल लेकर उसमे थोड़ा सा गाय का दूध मिलाकर उस लोटे के दुग्ध मिश्रित जल में रास्ते का पड़ा हुआ कोई भी एक कंकड़ उस लोटे में डालकर कम से कम 7 बार और अधिकाधिक 21 बार
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं
का मंत्र पढ़ते हुए उस बालक के ऊपर से उसार कर उस जल को लेकर उसमे से पड़े हुए कंकड़ को निकाल कर बाहर फेक दे और जल को पीपल के वृक्ष पर अर्पण कर दे । ऐसा करने से आक्रांत हुआ बालक भगवान शिव की कृपा से तत्काल ठीक हो जायेगा क्योंकि भगवान शिव ही कालो के काल महाकाल है और शिव सानिध्य में किसी का भी अमंगल नहीं हो सकता है।
केवल गाय के दूध का उपयोग ही सर्वविधि कल्याणकारी होता है क्योंकि भैंस का दूध महिष का दूध अर्थात राक्षसी का दूध होता है ।
सिद्धार्थनगर से राजेश शास्त्री की रिपोर्ट बी न्यूज