अगर यही प्रजातंत्र! तो फिर तानाशाही कैसी?

हमारे देश के बदलते प्रजातांत्रिक परिवेश मे सत्ताधारी राजनेताओं के दौरे को लेकर कब आम जनमानस को वहाँ के स्थानीय प्रशासन द्वारा बेइज्जत होना पड जाये इसका कोई दिन व समय मुकर्रर नही।

हैरत अंगेज बात यह है कि जिन नेताओं को चुनाव के वक्त आम जनता के बीच घूम घूम कर वोट माँगने पर किंचितमात्र भी भय नही होता राजनेता बनते ही वो आम जनता से इतना भयभीत क्यों रहते है,क्या इस लिऐ कि स्वनिर्वाचन के वक्त आम जनता से किये गये अपने वादों को एक प्रतिशत भी पूर्ण नहीं किया या फिर उनका उनका नियोक्ता (मतदाता)ही अब उन्हें शत्रु नज़र आने लगता है।

आज भी मानसपटल पर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेई जी के कानपुर निजी दौरे की एक घटना याद आ जाती है जब रावतपुर क्रॉसिंग पर रुके हुए ट्रैफिक को देखकर उन्होंने तत्काल कानपुर के कमिश्नर को तलब किया था और उनसे कहा था कि आम जनता को मेरे निजी दौरे पर यह तकलीफ क्यों  मेरा शत्रु कोई नही

राजनेताओं के दौरे के मद्देनजर आज के दौर मे प्रशासन द्वारा लगाई गई बैरीकेटिंग कही माताहतों द्वारा अपनी व्यवस्था की उतकृष्टता दिखाने को तो नही।आम दिनो मे उत्कृष्टता क्यों नही।

ब्यूरो महेंद्र राज शुक्ला

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