प्रातः भ्रमण की आवश्यकता क्यों है ?
प्रातः काल का समय शारीरिक स्वास्थ्य तथा मानसिक एवं बौद्धिक शक्तियों के संवर्धन के लिए अत्यधिक उपयोगी होता है।
प्रातः कालीन वातावरण मधुमय होता है। इसी समय पृथ्वी से मंद गंध जो कि मन को लुभाने वाली होती है निकलती है।
शीतल समीर शरीर को स्फूर्ति प्रदान करता है। इस अमृतमय,शीतल, सुगंध समीर के स्पर्श से शरीर में बल, तेज, कांति, स्फूर्ति,उत्साह एवं आरोग्य का संचार होता है।
चित्त प्रसन्न रहता है एवं मन में उल्लास की तरंगे उठती हैं, अतः प्रातः काल के वातावरण में टहलना अत्यंत लाभदायक होता है।
संजीवनी बूटी के समान गुणकारी वायु मरते हुए व्यक्ति में जीवन का संचार कर देता है।
ऋषियों ने प्रातः काल को ही प्राणायाम का सबसे अच्छा समय माना है प्राणायाम के द्वारा प्राण अपान, सभी समान अवस्था में रहते हैं।
भ्रमण कैसे किया जाए–
प्रातः काल भ्रमण करते समय गर्दन सीधी,रीढ की हड्डी सीधी,सीना तना हुआ, दोनों हाथ पूरी तरह हिलते रहने चाहिए।
ग्रीष्म और वर्षा की ऋतु में शरीर पर कम से कम वस्त्र होने चाहिए। मुंह बंद नाक से ही सांस लेनी चाहिए।
टहलते समय सदैव गहरी गहरी श्वास लें किसी मित्र आदि दूसरे व्यक्ति के साथ टहलते समय बातचीत नहीं करनी चाहिए।
तेज गति से टहलना, मंद गति से दौड़ना चाहिए। इससे गहरी श्वास चलने लगती है। टहलते समय स्वास्थ्य बनाने की भावना होनी चाहिए, जैसे-मेरे अंदर ओज,तेज और शक्ति का संचार हो रहा है,शरीर से संचित विकार निकल रहे हैं।
युवा व्यक्तियों को दौड़ने का ही अभ्यास करना चाहिए। वृद्ध लोगों को टहलने का क्रम अपनाना चाहिए।
महात्मा गांधी प्रतिदिन प्रार्थना के बाद भ्रमण किया करते थे महर्षि दयानंद प्रतिदिन दौड़ लगाया करते थे।
प्रतिदिन भ्रमण करने वालों को कब्ज नहीं रहता तथा खुलकर भूख लगती है जिन युवकों को वासनात्मक विकार अधिक आते हैं उन्हें दौड़ने का क्रम अपना लेने से वासनात्मक विकारों का शमन हो जाता है।
टहलने का स्थान जो पवित्र हो शुद्ध वायु बहती हो बाग बगीचे व पार्क को चुना जा सकता है।
विद्यार्थियों के लिए दौड़ और योगिक व्यायाम अत्यंत लाभकारी हैं जिन्हें दौड़ने का स्थान ना मिले उन्हें खुला द्वार रखकर कमरे में ही अपनी जगह पर दौड़ने का अभ्यास करना चाहिए।