कैसे टिकेगी लोकतंत्र की छत चौथे स्तंभ बगैर

बीते कई वर्षों से हो रहे पत्रकारों के उत्पीड़न और हत्याओं के पीछे आखिर किसका हाथ? क्या है मकसद?

उन्नाव

गौरी लंकेश जी की हत्या से शुरू हुआ यह सफर पुण्य प्रसून बाजपाई के उत्पीड़न तक पहुंचा। न जाने कई ऐसी खबर नवीसों के नाम इस कड़ी में जुड़े हैं।

दूसरी पारी में अर्नव गोस्वामी से लेकर उन्नाव के पत्रकार सूरज पांडे की हत्या में शामिल पुलिसकर्मी, शहर के गांधी नगर तिराहे पर अस्पताल चौकी इंचार्ज द्वारा पत्रकारों से अपशब्दों का प्रयोग।

अभी कुछ दिन पहले ही अस्पताल परिसर के निकट पत्रकार मनू अवस्थी पर जानलेवा हमले मे अभियुक्त की गिरफ्तारी में पुलिस की हीला हवाली।

हद तो तब हुई जब मुख्य विकास अधिकारी द्वारा एक पत्रकार के साथ इस वजह से मारपीट की गई कि पत्रकार चुनाव में हो रही धांधली रोकने का चित्रांकन कर रहे थे तो प्रदेश के मुख्यमंत्री पत्रकारों को संरक्षण का आदेश देते हैं पर वास्तविकता कुछ और ही कहीं योगी जी को बदनाम करने की प्रशासनिक साजिश तो नहीं।

ब्यूरो महेंद्र राज शुक्ल उन्नाव

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