सुल्तानपुर में गोवंश आश्रय स्थल की जमीन को लेकर नगर पालिका परिषद और जिला पंचायत हुए आमने-सामने।
एक तरफ जहां नगर पालिका अपनी जमीन बताकर वहां बन रहे दुकान का विरोध कर रहा है,वहीं दूसरी तरफ जिला पंचायत उसे अपनी जमीन बताकर दुकानों से आने वाले किराए के धनराशि से गोवंश आश्रय स्थल चलाने के लिए खर्च की बात कर रहा है।
फिलहाल शिकायती पत्र मुख्यमंत्री से लेकर तमाम अधिकारियों तक पहुंच चुका है,अब देखना यह दिलचस्प होगा,कि यह सरकारी भूमि के लिए आमने-सामने दोनों विभागों में भारी पड़ता है।
दरअसल ये मामला है नगर कोतवाली के अमहट स्थित गोराबारी गांव का। जहां लखनऊ-सुल्तानपुर हाइवे पर आवारा पशुओं को रखने के लिए एक पुराना कांजी हाउस चल रहा था।
वही नगरपालिका परिषद सुल्तानपुर का आरोप है कि यह जमीन नगर पालिका की थी और जिला पंचायत के सहमति के आधार पर वह गोवंश आश्रय स्थल का निर्माण कार्य कराया गया,लेकिन वहां कॉम्प्लेक्स बनाया जा रहा।
जिसको लेकर नगर पालिका अध्यक्ष बबिता ने मुख्यमंत्री समेत तमाम अधिकारियों से इसकी शिकायत की है। यह बातें नगरपालिका अध्यक्ष प्रतिनिधि ने बताया।
वही सुल्तानपुर जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी उदय शंकर सिंह की माने तो सन 1956 से ये जमीन जिला पंचायत के अधीन है। इतना ही नहीं इस स्थान पर चल रहे कांजी हाउस में तैनात कर्मचारियों की बेतन भी उन्हें विभाग से जारी किया जाता है,जिसका सबूत भी उनके पास हैं।
सन 2005 में राजस्व विभाग के लिपिकीय त्रुटि के चलते कांजी हाउस की ये जमीन नगरपालिका के नाम दर्ज हो गई थी।
जिसके लिए जिला पंचायत अपर मुख्य अधिकारी द्वारा लगातार नगरपालिका से पत्राचार भी किया गया,लेकिन संशोधन न होने की दशा में न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर दिया गया।
इस मामले में तत्कालीन नगर पालिका ईओ ने न्यायालय में अपना शपथ पत्र भी दिया है, जो कि धारा 3,4,7,14 व 16 में अंकित है। कि यह कांजी हाउस नगर पालिका परिक्षेत्र से बाहर है और नगर पालिका से इसका कोई लेना देना नहीं है। जो कि नगर पालिका द्वारा गोवंश आश्रय स्थल निर्माण के लिए एनओसी भी जारी की गई, जिसके बाद ही वहां आवारा पशुओं के लिए वृहद गौशाला का निर्माण कार्य शुरू कराया गया।
जिला पंचायत अपर मुख्य अधिकारी उदय शंकर सिंह के अनुसार इस गौशाला को चलाने के लिए कोई वित्तीय सहायता का जरिया नही है,जिसे देखते हुए अधिकारियों के संज्ञान में लाते हुए यहां दुकानों का निर्माण कार्य शुरू कराया गया। इन दुकानों के किराए से जो धनराशि मिलेगी उसी से यहां के गोवंश आश्रय स्थल की देखरेख कर खर्च चलाया जाएगा।
वहीं जिलाधिकारी सुल्तानपुर की मानें तो दोनों ही सरकारी विभाग हैं। लेकिन यहां शॉपिंग कांप्लेक्स का निर्माण हो सकता है या नहीं, इसके लिए जिला पंचायत को निर्देशित किया गया है कि वह अपने निदेशालय से पहले उसकी जानकारी कर ले फिर वहां निर्माण कार्य करें ।
जिला अधिकारी के अनुसार सन् 2005 में तहसीलदार की रिपोर्ट के आधार पर ये जमीन नगरपालिका के नाम दर्ज हुई थी। उसके पहले जमीन किसके नाम थी उसकी भी जांच कराई जा रही है।