कुछ इन्हीं बैसवारी पंक्तियों को चरितार्थ कर रहा है हमारा दिखावटी सनातनी स्वरूप। एक ओर जहाँ हम सुदूर क्षेत्रों मे स्थित परमात्मा के प्राकृट्य स्थलों के नवनिर्माण व आतातायी मुगल शासकों की कैद से मुक्त हुऐ शिवलिंगों की कहानियां कहते सुनते नही अघाते वही जब जिक्र आता है सन्निकट स्थित सिद्ध माता कल्याण़ी शक्तिपीठ के सौंदर्यीकरण व प्राकृतिक स्वरूप को पुनःपूर्व रूप में लाने का तब न जाने क्यों हमारी ज़ुबान पर ताले लग जाते हैं? शायद हमारा अन्तर्मन इसकी गवाही इसलिए भी नही देता कि हम निज स्वार्थ मे सूर हो चुके हैं।
बताते चलें कि शहर के पाश व हिंदू बाहुल्य क्षेत्र मे स्थित माँ कल्याण़ी शक्ति पीठ सनातनियों की आस्था का केंद्र है।जहाँ सुदूर क्षेत्रों से लोग दर्शनार्थ आते हैं व मन की मुरादें पाते हैं।हैरत अंगेज बात यह है कि सिद्धपीठ शनैः शनैः अपने प्राकृतिक स्वरूप को खोता जा रहा है। एक ओर जहाँ सिद्धपीठ परिसर की सीमा मे आने वाले सभी नीम के वृक्षों की कटान ही मंदिर परिसर के आधुनिक विकास की प्रमाणिंकता सिद्ध करता है वहीं दूसरी ओर परिसर मे स्थिति जलाशय की दयनीयता विकास कार्यों पर प्रश्न चिह्न लगा हमारे दिखावटी भवेशियापन को उजागर करती है।
समितियों के विवाद मे रुका जलाशय का जीर्णोद्धार
सूत्रों की मानें तो पौराणिंक पीठ का इतिहास लगभग एक शताब्दी से भी पुराना है।लगभग 70 दशक पूर्व पीठ की सारी व्यवस्था शहर के जाने माने अधिवक्त स्व.बाबू चंद्र भूषण़ तिवारी के हाँथों मे सुचारु रुप से पल्लवित हो रही थी।उनके गोलोक वासी होने के पस्चात् उनकी ज्येष्ठ पुत्र वधु स्व.श्रीमती शाँती तिवारी ने कार्यभार को गृहण़ कर शक्ति पीठ की गतिविधियों का तकरीबन 1.5 दशक तक सफलतम् संचालन किया।उनके असमय काल कवलित होने के पस्चात् समितियों के उदय के पस्चात् पीठ क्रमशः जिस प्रकार सौदर्यीकरण के पथ पर गतिमान रहा उसके विपरीत मंदिर परिसर मे स्थित सरोवर की स्थितियाँ भू माफियाओं के कब्जे मे आकर बद से बदतर होती चली गईं और विशाल सरोवर एक बरसाती बदबूदार पानी युक्त गढ्ढे मे तब्दील होकर रह गया।
पूर्व मे जन प्रतिनिधियों व जिला अधिकारियों ने सरोवर के विकास के आश्वासन दिऐ पर विकास ने कागज़ो पर ही दम तोड़ दिया। उल्लेखनीय है कि वर्तमान मे भी जलाशय के सौदर्यीकरण के लिए 60 लाख रु. माननीय शहर विधायक के पास सुरक्षित है और वो स्वयं विकाश हेतु प्रयत्नशील है परंतु पूर्व समिति व नव गठित समिति के आपसी विवाद के चलते सरोवर खून के आँसू रोते हुऐ विकास की बाट जोह रहा है और हम अपने सिर्फ प्रदर्शनीय हिंदुत्व की धर्म ध्वजा हाथों मे लिऐ फूले नहीं समा रहे।