सृष्टि की आदिशक्ति भगवती दुर्गा ही जगत की आधार प्राण शक्ति है

 सिद्धार्थनगर / उत्तर प्रदेश

शक्ति के बिना सभी सजीव निर्जीव हो जाते हैं इसलिए दुर्गा उपासना ही शक्ति उपासना है । शक्ति की ऊर्जा ही किसी भी वस्तु के स्वरूप को स्थिर रखने में समर्थ होती है । बिना शक्ति के कोई भी वस्तु क्षणभर टिक नहीं सकती इस कारण शक्ति को ही जीवन माना गया है ।

शक्ति की आराधना अनादि काल से ही अर्थात शृष्टि रचना के आरम्भ से ही चली आ रही है । यद्यपि वर्ष में चार नवरात्र पढ़ते हैं जिनमें दो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि माना गया है जिससे सभीं लोगों को केवल दो ही नवरात्रि के बारे में ही जानते हैं । इसलिए यहॉ पर दोनों नवरात्रि के बारे में बताया जा रहा है ।
जिसमें आश्विन मॉस मे पड़ने वाले शारदीय नवरात्र में शक्ति के साकार रूप की पूजा की जाती है । किंतु नव संवत्सर के आगमन पर पड़ने वाला वासंतिक नवरात्रि में शक्ति के निराकार रूपों की पूजा की जाती है तथा इस नवरात्र में शक्ति के साथ-साथ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की पूजा की जाती है एवं तांत्रिक अनुष्ठानों में रामायण आदि के चौपाई मंत्र का अनुष्ठान भी भगवती दुर्गा के समक्ष किया जाता है ।

क्योंकि भगवति दुर्गा नें स्वयं अपनें मुख से ही कहा है कि हे देवताओं मैं तुम्हें बताती हूँ कि : अहम राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा याज्ञियानाम तां देवा व्यदधु: पुरुत्रा भूरिस्थात्रा भूर्यावेशयनतीम् ।।
अर्थात संपूर्ण जगत की अधिईश्वरी अपने उपासक को धन की प्राप्ति कराने वाले साक्षात्कार करने योग्य पर ब्रह्म को अपने से अभिन्न रूप में जानने वाली तथा पूजनीय देवताओं में प्रधान हूं । मैं परपंच रूप से अनेक भावों में स्थित हूं इसलिए जो मुझको इस रूप में देखता है मैं उसके समस्त बॉधाओं का शमन कर देती हूँ । इसमें कोई संशय है ही नहीं ।

सिद्धार्थनगर से राजेश शास्त्री की रिपोर्ट बी न्यूज

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