आहार की पूर्ण पौष्टिकता प्राप्त करने के लिए आहार संबंधी 24 उपयोगी सूत्रों का ज्ञान होना आवश्यक है, जिससे द्रव द्रव्यों का संपूर्ण सदुपयोग कर मनुष्य निरोगी जीवन प्राप्त कर सकता है।
यह 24 सूत्र इस प्रकार है –
(1) आहार की दृष्टि से आमाशय के तीन भाग–:
अमाशय को तीन भागों में विभाजित करके एक भाग को ठोस पदार्थों से भरना चाहिए दूसरा भाग चाटने योग्य व पेय पदार्थों से तथा तीसरे भाग को बात पित्त कफ के विचरण के लिए रखना चाहिए।
(2) नियत समय तथा नियत मात्रा में भोजन ग्रहण करें–:
नियत समय में नियत भोजन को ही ग्रहण करना चाहिए असमय तथा असंयमित भोजन करने से पाचन क्रिया में व्यवधान पड़ता है।
(3) आहार पर मनोभावों का प्रभाव–:
भोजन प्रसन्न चित्त मन से करना चाहिए। मन में क्रोध आदि के भाव का उदय हो तो ऐसे मानसिक विकारों की अवस्था में भोजन करना हानिकारक होता है,
क्योंकि भोजन शरीर में जाकर सही ढंग से पचता नहीं है और व्याधियों को उत्पन्न करता है। अतः भोजन एकांत मन ,प्रसन्न मन से पवित्रता से तथा भगवान का ध्यान करके करना चाहिए।
(4). भोजन की निश्चित मात्रा–:
भोजन की मात्रा निश्चित होनी चाहिए अधिक भोजन सब प्रकार से हमारे लिए हितकर है।
भोजन की निश्चित मात्रा ना होने पर भोजन का पाचन ठीक ढंग से नहीं हो पाता तथा वह भोजन अपक्व होकर कब्ज का रूप लेकर हमारे शरीर को हानि पहुंचाता है।
(5) अरुचिकर भोजन ग्रहण ना करें–:
जिस भोजन को देखकर घृणा उत्पन्न हो या जिस में रुचि ना जान पड़े ऐसा भोजन नहीं करना चाहिए ऐसे भोजन से चित प्रसन्न नहीं होता तथा इस अवस्था से पाचन प्रक्रिया पर काफी असर पड़ता है।
(6) बासी भोजन से परहेज करें–:
मानसिक रूप से काम करने वालों के लिए बासी भोजन हानिकारक साबित होता है। ऐसा भोजन आलस्य उत्पन्न करता है तथा स्मरण शक्ति को घटाता है।
अतः मानसिक रूप से काम करने वाले व्यक्तियों तथा विद्यार्थियों को बासी भोजन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।
(7) भोजन शरीर के ताप से थोड़ा अधिक गर्म हो–:
पके हुए भोजन को शरीर के ताप से थोड़ा अधिक गर्म करने से उसका स्वाद ठीक रहता है तथा वह जठराग्नि को प्रदीप्त करता है।
जिससे भोजन शीघ्र पचता है वायु बाहर निकलती है और कफ को शुद्ध करता है।
अत्यधिक गर्म आहार अमाशय में पित्त को बढ़ाकर हानि पहुंचाता है।
(8) सही ढंग से सेकी रोटी ग्रहण करें–:
सही ढंग से सेकी रोटी को ही ग्रहण करना चाहिए। जली रोटी तथा कच्ची रोटी स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होती है।
जली रोटी सारहीन होती है तथा कच्ची रोटी पेट दर्द उत्पन्न करती है। अतःठीक ढंग से सेकी रोटी को ग्रहण करना चाहिए।
(9) समय अनुसार भोजन में परिवर्तन करें–:
एक समय में एक या दो प्रकार का भोजन ग्रहण करना लाभप्रद है लेकिन भिन्न-भिन्न समय में अर्थात समय अनुसार भोजन में परिवर्तन करना चाहिए।
जिससे हमारे शरीर को सभी प्रकार के पोषक तत्व प्राप्त हो सके।
(10). भोजन में चिकनाहट की न्यूनतम मात्रा लाभप्रद–:
अग्नि में अन्न तथा अन्य खाद्य पदार्थों को पकाने से उनकी स्निग्धता नष्ट हो जाती है अतः आहार की स्निग्धता बनाए रखने के लिए उसमें कुछ अंश तेल या घी का डालना चाहिए।
जिससे भोजन अग्नि वर्धक तथा बलवर्धक होता है और आंतों में आसानी से खिसक सकता है।
(11)- अधिक ठंडा या गर्म भोजन का दातों पर प्रभाव–:
अधिक ठंडा या गर्म भोजन तत्वों को हानि पहुंचा कर विकार उत्पन्न करता है इसलिए भोजन कम ताप का ही खाना चाहिए।
(12). निश्चित समय अंतराल में भोजन का सेवन करें–:
अन्न से बना भोजन 3 घंटे में पचता है। निश्चित समय अंतराल अर्थात दो बार के भोजन के बीच में 6 घंटे का अंतर होना चाहिए।
इस समय से पहले किया भोजन आज अधपचा और दोबारा किया भोजन शारीरिक दोष उत्पन्न कर दोषों को कुपित करता है।
(13). जल्दबाजी में आहार ग्रहण हानिकारक–:
जल्दबाजी में ग्रहण किए भोजन से शरीर में रूखापन पैदा होता है तथा आलस्य बढ़ता है।
अतः भोजन को आधे घंटे का समय देकर अच्छे ढंग से चबाना चाहिए जिससे मन तृप्त तथा भोजन का सही पाचन हो सके।
(14). क्ष।र,विटामिंस तथा प्रोटीन युक्त भोजन ग्रहण करें–:
दैनिक जीवन में विटामिन युक्त और छार युक्त भोजन, तरकारी और फल,कारबोज और प्रोटीन युक्त आहार जैसे-
गेहूं ,चावल ,दाल ,आलू आदि भोजन में अवश्य होना चाहिए । जो लोग निर्धनता के कारण फल आदि का सेवन नहीं कर सकते है ,
वह मूंगफली ,चना ,बाजरा गेहूं आदि अन्न को भिगोकर तथा अंकुरित कर थोड़ी मात्रा में सेवन से विटामिन प्राप्त कर सकते हैं।
(15). तला तथा गरिष्ठ आहार के सेवन से बचें–:
घी और तेल में तली चीजें गरिष्ठ होती हैं तथा देर से पचती है अतः इन्हें कम खाना चाहिए।
कटहल, उड़द की दाल ,गरिष्ठ होती है अतः इनका सेवन आहार रूप में कम करना चाहिए।
(16) शांति पूर्वक भोजन ग्रहण करें–:
भोजन करते समय ना अधिक बोलना चाहिए और ना अधिक हंसना चाहिए। ऐसा करने से भोजन श्वास नली में चला जाता है।
जिससे खांसी उत्पन्न होकर हमें कष्ट पहुंचता है अतः भोजन शांति की अवस्था में करना चाहिए।
(17). प्रातः काल नींबू पानी का सेवन करें–:
सुबह के वक्त चाय कॉफी के बजाय गुनगुने पानी में नींबू निचोड़ कर पीना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है अतः इसका प्रतिदिन उपयोग करें।
(18). अधिक भोजन करने से बचें–:
थोड़ी सी भूख रहने पर भोजन नहीं करना चाहिए। भूख से कम भोजन करने से व्यक्ति निरोगी जीवन व्यतीत करता है तथा उसकी आयु शक्ति और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
(19). दोपहर के भोजन के बाद विश्राम तथा शाम के भोजन के बाद टहलना आवश्यक–:
दोपहर के भोजन के बाद दस, बीस मिनट लेट कर विश्राम करने से लाभ मिलता है लेकिन सोने से आलस आता है जो हानि प्रद है।
शाम के भोजन के पश्चात मीलभर टहलने से भोजन आसानी से पच जाता है।
(20). एक समय में विभिन्न प्रकार के आहार सेवन से बचें–:
भोजन में एक साथ अनेक प्रकार के शाक, आचार, मुरब्बा मिठाइयों आदि के सेवन से पचाने में कठिनाई होती है।
ऐसा भोजन भूख से अधिक खाया जाता है जो हमारे स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक है।
(21) सांयकाल आहार ग्रहण करते ही सोना हानिकारक–:
शाम सोने से दो-तीन घंटे पहले भोजन करने से पाचन ठीक ढंग से होता है। खाते ही सो जाने से आहार के पचने में गड़बड़ी होती है तथा नींद सुखमय नहीं आती है।
अतः शाम को आहार करने के थोड़ी देर बाद ही सोना चाहिए।
(22). सीमित मात्रा में रसेदार सब्जियां तथा दाल का प्रयोग–:
भोजन पचने में कठिनाई ना हो इसके लिए आहार में रसेदार सब्जियां तथा दाल की सीमित मात्रा लेनी चाहिए।
सूखे भोजन को पचाने में कठिनाई होती है जिससे सीने में जलन तथा खट्टी डकार आती हैं और रक्त अभिसरण की क्रिया में बाधा आती है
(23). अत्यधिक तैलीय पदार्थ का सेवन हानिकारक–:
भोजन में घी तेल आदि स्निग्ध पदार्थ का अत्यधिक सेवन करने से भोजन पचने में कठिनाई होती है।
अज्ञानतावश लोग खूब घी मक्खन का सेवन करने को शक्ति पद पद मानते हैं जो वास्तव में नुकसानदेह है।
(24) .शक्ति और स्वास्थ्य पाचन पर निर्भर–:
शरीर को शक्ति तथा स्वास्थ्य आदि भोजन से नहीं वरन भोजन के अच्छे ढंग से पचने में मिलता है।
अच्छी तरह से बचकर भोजन रस तथा रक्त में परिवर्तित होता है और शरीर को पोषण देता है तथा स्वस्थ बनाता है।
अत्यधिक भोजन करने से शक्ति तथा स्वास्थ्य दोनों का हास होता है।
(प्रस्तुत सूत्रों की सहायता से आहार तथा दिनचर्या का निर्धारण कर हम स्वास्थ्य समस्या का समाधान बड़ी सरलता पूर्वक कर सकते हैं।
निरोग रहने के लिए किसी बड़ी शिक्षा-दीक्षा,अध्ययन, अनुभव,शोध, विश्लेषण, प्रवचन, श्रवण, मनन, चिंतन आदि की आवश्यकता नहीं होती।
आवश्यकता केवल इतनी भर है कि बुद्धि भ्रम के व्यापक जाल जंजाल से हटाकर अपना ध्यान अपने आहार तथा विहार पर केंद्रित कर उपयुक्त तथा स्वास्थ्यवर्धक सूत्रों को ग्रहण करें।
स्वस्थ शरीर से ही मानसिक बल की प्राप्ति होती है।
उपयुक्त सूत्रों को ग्रहण करके मनुष्य अपने स्वास्थ्य को प्राप्त कर सकता है जीवन शैली, आहार-विहार का क्रम बदलकर हर व्यक्ति निरोग जीवन जी सकता है और रोग मुक्त रह सकता है।
एक विचारक ने कहा है-
खाने को आधा, पानी को दूना,कसरत को तिगुना और हंसने को चौगुना करो तभी हम निरोगी काया प्राप्त कर सकते हैं।