अज्ञान क्या है।

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मध्य प्रदेश से सुरेश पटेल की रिपोर्ट बी न्यूज

इह ज्ञानं मोक्षकारण्, बन्धनिमित्तस्य अज्ञानस्य विरोधत्वात्। द्विविधं च अज्ञानम्,बुद्धिगतं पोरूषं च ।तत्र बुद्धिगतमनिश्चय स्वभावम् ,विपरीतनिश्चयात्मकं च। पौरूषं तु विकल्पस्व भावं संकुचितप्रथात्मकं तदेव च मूलकारणं संसारस्य इति वक्ष्यामो मलनिर्णये ।

अनुवाद:-  ज्ञान मोक्ष का कारण माना जाता है । क्योंकि बन्ध निमित्तक अज्ञान का वह विरोधी है ।
अज्ञान दो प्रकार का होता है ।१, बुद्धिगत और २, पुरूषगत। बुद्धिगत अनिश्चिय स्वभाव वाला होता है और विपरीत निश्चचयवाला भी होता है।पुरूषगत अज्ञान विकल्पस्वभाव वाला एवं संकुचित प्रथा वाला होता है। यही अज्ञान का मूल कारण होता है ।


इस ज्ञान को ही मोक्ष का कारण मानते है वास्तव मे पूर्ण प्रथात्मक होता ( अनुत्तर-पर) है यह परिस्थिति है इसमें पूर्णकात्मक(इच्छा- परापर) प्राप्त हो जाता है । यह पूर्णकात्मक ही मोक्ष (ज्ञानोन्मेषन्त्र पर भेद ) है ज्ञान मोक्ष का कारण है।

किन्तु इस मान्यता का आधार दूसरा ही है|

कारण से कार्य की उत्पत्ति होती है जैसे स्वर्ण से स्वर्ण से आभूषण अथवा मिट्टी से घडा़ रूप कार्य उत्पन्न होते है, यह कारण भाव ज्ञान और मोक्ष मे नही है । यहाँ फिर क्यो ज्ञान को मोक्ष का कारण कहा गया है । इसका उत्तर स्पष्ट है ।ज्ञान बन्ध निमित्त अज्ञान का निरोधक है इसलिए ज्ञान मे मोक्ष की कारणता स्वतः आ जाती है । हेतु और फल , कारण और कार्य का यह भाव ज्ञान और मोक्ष से सम्बन्ध मे नही ग्रहण किया जा सकता।

ज्ञान विश्वभावैकभावात्म स्वरूप प्रथन मात्र है विश्व मे जितने भी नील पीत सुख दुख आदि भाव है उनका एक भावरूप मे अर्थात प्रकाशमान होने के कारण सभी पदार्थ प्रकाशमात्र रूप है इस लिये परप्रकाश रूप रूप मे सर्व को समाहित करने वाले महाभाव रूप मे आत्मरूपता का अविकल्प भाव से साक्षात्कार ही स्वरूप का प्रथम है|

स्वरूप का प्रथन ही मोक्ष है विश्व परमेश्वर का प्रकाश विस्फार है। इस रूप से उसे न जानना ही बन्ध है। इस रूप से जानना और वही हो जाना ही मोक्ष है । इसी तात्पर्य से बन्ध निमित्त अज्ञान का विरोधी होने के कारण ज्ञान को मोक्ष का कारण कहा गया है ।

नैयायिकों को अनुसार ज्ञान आदि मोक्ष से भिन्न माने जाते है वैसा दृष्टिकोण यहा नही है वास्तव मे विश्वभावैकभावात्मकता तभी हो सकती है जब व्योम, विग्रह, बिन्दू, वर्ण , भुवन, और शब्द से विमर्श से पर विमर्शैकसार शिवैकात्म्य प्राप्तिरूपा दशा उपलब्ध हो जाये।

शिवैकात्म्य भाव ज्ञान का महा भाव है यहाँ बौद्ध ज्ञान की निवृत्ति हो जाती है विकल्प का उन्मूलन हो जाता है शुद्ध शिव रूप आत्मदर्शन हो जाता है मोक्ष सभी शास्त्रकारो का मान्य सिद्धांत है संसार मोक्ष का प्रति पक्षभूत होने के कारण हेय है ।

संसार का निमित्त मिथ्याज्ञान ही है अथवा प्रतिकूल तत्त्वज्ञान भी संसार का निमित्त हो सकता है ।आत्म साक्षात्कार से अज्ञान का अपगम होता है और अज्ञान के अपगम से ही मोक्ष द्वैत प्रथा ही अज्ञान है अज्ञान तुच्छ होता है और बन्ध का कारण बन जाता है|

अज्ञान दो प्रकार का होता है बुद्धि गत(बौद्ध) और पौरूषगत बुद्धि अन्तकरण को अन्तर्गत आती है ।अन्तःकरण के बाद ही शरीर बनता है शरीर भुवनाकार होता है भुवन के अंकुर का कारण ही अज्ञान होता है। इस प्रकार का अज्ञान ही बौद्ध अज्ञान है बौद्ध अज्ञान कर्म के कारण बनते है और कर्म भी बौद्ध अज्ञान को कारण बनते है वस्तुत अज्ञान संसारोत्तर कालिक होता है इसी के अभाव से मोक्ष सम्भव है।

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