वर्तमान राजनीति और पूर्व की राजनीति में बस इतना ही अंतर आया है

उन्नाव

उन्नाव से राजेन्द्र कसेरा की रिपोर्ट बी.न्यूज़

कि पूर्व में नेता विचारों के आधार पर भी जनता के द्वारा चुन लिया जाता था। पूर्व में जनता के द्वारा पार्टी धर्म जाति रंग भाषा को नकार कर एक अच्छे निर्दलीय उम्मीदवार को भी चुन लिया जाता था। जोकि वर्तमान में इस विधि को बंद कर दिया गया है।

लेकिन वर्तमान में विचार के साथ धन का होना भी आवशयक है। और जनता ने अपना स्वयं का निर्णय लेना बंद कर दिया है। अब पार्टी जिस उम्मीदवार का चुनाव करती है जनता भी उसी उम्मीदवार को चुन लेती है।

यानि अब जनता की चुनावी सोच केवल धर्म जाति पार्टी रंग भाषा के आधार पर ही सिमट कर रह गई है। वैसे जनता ने जो पूर्व में चुनाव किसी है परिणाम भी वही आया है। ये ओर बात है कि मन को संतुष्ट करने के लिए जनता अपनी स्वयं की गलती ईश्वर पर छोड़ देती है। और फिर से चुनाव करने के लिए एक ओर गलती दोहराने के लिए लाइन में लग जाती है।

ये परम्परा तब चलती है जब तब जनता समझ में नहीं आ जाता है कि वो गलती क्या कर रही है।
इसका प्रमुख कारण एक ये भी है कि जनता ने कभी लोकतांत्रिक व्यवस्था को चखा ही नहीं जनता हमेशा राजशाही को ही लोकतांत्रिक व्यवस्था समझती रही है।

गलत नीतियों का विरोध करना लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा ही नहीं बल्कि विरोध करना लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है जिसको वर्तमान में गिराया जा रहा है।

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