इसीलिए जुल्म और जुर्म उतना ही करो जितना तुम सह सको |

उन्नाव

उन्नाव से राजेंद्र कसेरा की रिपोर्ट बी.न्यूज़

  • सुल्तान की सल्तनत से नबाब भी उठा लिए जाते है इसी लिए जुल्म और जुर्म उतना ही करो जितना तुम सह सको

कुदरत ने इस जहां को अजूबा बना रखा है। उसके नियमों के तारतम्य को समझना आसान नहीं है जिन मिट्टी के पुतलों में आत्मा का प्रवेश कराकर अपने इशारे पर नचाने के लिए वक्त की चाभी भर संसार के परिदृश्य में समाहित कर लोक कल्याण हेतु समर्पित किया वहीं मिट्टी का पुतला इस कदर चालाक निकला की कायनाती ब्यवस्था को भी आस्था की चासनी में डुबोकर अपने खुद का मालिक बन बैठा जब की उसको पता भी नहीं जिस परमात्मा ने चाभी भरी है वह चलेगी कितने घरी। हर मानव को अपने कर्मों की सजा भुगतने के लिए बार बार इस मृत्यू लोक में परलोक सुधारने के लिए भेजा जाता है।

मगर माया के आवरण में अवतरण दिवस से ही अपना मूल‌ उद्देश्य भूल‌ जाता है‌ आदमी। जैसे जैसे उम्र की दहलीज पर एक एक कदम बढ़ाता जाता है वैसे ही वैसे मतलवी संसार के स्याह आवरण में सब कुछ भूलता जाता है। धन वैभव सुख सम्बृधि अपने पराए के भेद भाव के साथ ही मानव कल्याण के उस सूत्रको भूल जाता है जिसको प्रारब्ध के परिशीलन के समय हजार बार नतमस्तक होकर स्वीकार किया था । मानव जीवन मोक्ष प्राप्त करने की आखरी सीढ़ी होता है।मगरुर मानव इससे इतर हटकर तमाम ऐसे कर्म कर जाता है जिसका खामियाजा सैकड़ों लाखों वर्ष चौरासी हजार योनियों में भटक कर भोगाता है।

गरूण पुराण शिव पुराण जैसे कालजई ग्रन्थ में इसका उल्लेख जन्म मृत्यू के मोह बन्धन से छुटकारा का रास्ता प्रशस्त करते हैं मगर इस आधुनिकता के आवरण में जहां विलासिता का सम्वरण पाकर मतलबी मानव अपना अतीत भूल रहा है वहीं लगातार इसका दंड भी भोग रहा है।आज का परिवेश इन्सानियत के लिए प्रदूषण भरा है  हर आदमी भविष्य के सुखद सपने सजाते वर्तमान को प्रदूषित कर रहा है। यहां तो सबको पता है जो कुछ होना है वह जन्म के पहले से ही निर्धारित है। यह अकाट्य सत्य है। इसको हर धर्म सम्प्रदाय के लोग मानते हैं! यह भी जानते हैं साथ कुछ नहीं जायेगा!नंगे पांव आये थे नंगे पांव जाना है!

फिर भी हर आदमी धन सम्पदा का दीवाना है।आदमी को यह भी नहीं पता जिसको कह रहा अपना वह बेगाना है। वह तो केवल मुसाफिर है यह पड़ाव उसका मुसाफिर खाना है ।  कौन यहां अपना पराया कौन है  इस पर शास्त्र भी है मौन फिर भी सुबह शाम दिन रात उन्हीं अपनों के लिए हर कोई है बेचैन सांस भी उधारी है। मिट्टी की काया भी पट्टे पर है!हर पल मौत पीछा कर रही है। सत्कर्म भी आगे पीछे लगा है! लेकिन उसको नजरंदाज कर बेअन्दाज मानव समाज श्मशान कब्रिस्तान जाने तक अहम पाले अपनों के लिए भविष्य के सपनों में खोया रहता है ।

जब प्रारब्ध पहले से निर्धारित ब्यवस्था में सब कुछ उपलब्ध करा रहा है तो फिर गरीब असहाय लाचार के साथ‌ दुर्व्यवहार  दूराचार कर बद्दुआ वो को अपनी झोली में भरकर आखरी सफर को भी विकृत क्यों कर रहा है। जरा सोचिए कितना अनमोल ज़िन्दगी का हर लम्हा है! जिसने सदाचार सत्कर्म के मार्ग पर चलकर औलिया फकीर साधु महात्मा संन्यासी की तरह ज़िन्दगी जिया मत्यु लोक के आवागमन से मुक्त हो गया। यह जीवन एक निश्चित उद्देश्य के लिए मिला होता है। जिस दिन वह उद्देश्य पूर्ण होता है उसी दिन किसी न किसी बहाने यमलोक जाने का विकल्प मिल जाता है।

इतिहास गवाह है सदियों से जब जब धर्म पर हानि होती है। इन्सानियत कराहती। मानवता विलाप करती है। अत्याचार चरम पर होता है। राक्षसी प्रबृति के लोगों का बोलबाला होता है। तब तब अदृश्य परमात्मा उन दुष्ट जीवात्माओं के संहारण के लिए अवतरित होते हैं। वर्तमान आजकल वहीं परिदृश्य प्रतिबिंबित कर रहा है। मुगालते में न रहे ।कुछ भी अपने हाथ में नहीं है!कर्मफल भोगना निश्चित है।

पाप कर्म का यही प्रायस्चित है!इस मृत्यु लोक के कर्म मंचन में जिसका जब रोल खत्म होगा पर्दा गिरता रहेगा। जिसका जब समय पूरा हो गया उसका जाना भी निश्चित है। कर्म के अनुसार ही आखरी सफर का अनुगमन भी तय है। जीवन के हर पल को धर्म सत्कर्म के साथ जिए कुछ भी साथ नहीं जायेगा।सब यही रह जायेगा। न कोई अपना है न पराया है। सिर्फ यहां मोहमाया है।

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