मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह हथेली दर्शन के बाद पृथिवी माता का अभिवादन करे क्षमा मंगते हुए

सिद्धार्थनगर / उत्तर प्रदेश

आइये जानें पिछले अंक का शेष श्लोक : समुद्रवसनें देवि पर्वतस्तन मण्डिते ।
बिष्णुपत्नि नमस्तुभ्यमं पादस्पर्शमं क्षमस्व में ।।अर्थात समुद्ररूपी बस्त्रों को धारण करने वाली पर्वतरूपस्तनों से मण्डित भगवान बिष्णु की पत्नी हे माता पृथ्वीदेवि आप मेरे पादस्पर्श को क्षमा करें और इसके बाद पूजन स्थल पर रखे हुए शंख मृदंग स्वर्ण चन्दन व गोरोचन आदि माँगलिक बस्तुओं का दर्शन कर अपने माता पिता एवं गुरू तथा भगवान सूर्य नारायण का दर्शन करें ।
इतना सब करने में समय तो बिल्कुल कम लगता है किन्तु इतना सब नियमित करने के बाद मनुष्य के जीवन में एकाएक बदलाव आना शुरू हो जाता है और धीरे धीरे उसके सभीं विकारों का अन्त होने लगता है।
इसके बाद अब आता है दैनिक शौचादि कृत्य से निवृत्त होकर स्वच्छ बस्त्रादि बदल कर आगे का कृत्य करना चाहिए जो अष्ट श्लोकों मे लिपिबद्ध है जिसकी चर्चा आगे के अंक में किया जायेगा ।

इस प्रकार जो लोग पूरी निष्ठा व श्रद्धा पूर्वक भगवत स्मरण प्रतिदिन करते हैं उनका दिन कभीं भी अमंगल नहीं होता है बल्कि उन्हें धीरे धीरे एक ऐसी शक्ति का आभास होने लगता है और दुर्गति भी दूर होने लगती है ।
जिससे उसके जीवन में भूख प्यास और काम की बाधा नहीं होती है और उसका मार्ग स्वत: ही प्रशस्त होने लगता है।शेष अगले अंक में…..

सिद्धार्थनगर से राजेश शास्त्री की रिपोर्ट बी न्यूज

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