नई दिल्ली
नई दिल्ली से बी.न्यूज़ की रिपोर्ट
स्मार्टफोन, डिजिटल स्क्रीन के अधिक इस्तेमाल और बाहरी गतिविधियों के कम होने से बच्चों को मायोपिया यानी निकट दृष्टि रोग के मामले बढ़ने लगे हैं। इस बीमारी में दूर की वस्तुएं ठीक से नहीं दिखाई देती हैं।
एम्स दिल्ली के नेत्र रोग विभाग के प्रोफेसर जीवन एस. टिटियाल के मुताबिक, यदि बच्चों की डिजिटल स्क्रीन की लत और इस पर निर्भरता इसी तरह रही तो साल 2050 तक देश में 50 फीसदी बच्चे मायोपिया से ग्रसित हो सकते हैं। उनका दावा है कि यदि ऐसा हुआ तो नजर कमजोर होने की वजह से देश की आधी जनसंख्या सेना और सशस्त्रत्त् बल जैसे काम के लिए अयोग्य हो जाएगी।
ऐसे में एम्स के बाल नेत्र रोग विभाग के डॉक्टरों ने देशभर के 63 विशेषज्ञों की टीम के साथ मिलकर बच्चों में मायोपिया की बीमारी रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाए हैं। एम्स के डॉक्टर रोहित सक्सेना के नेतृत्व में इन दिशा-निर्देशों को लेकर इंडियन जर्नल ऑफ ऑप्थोमोलोजी में एक अध्ययन भी प्रकाशित हुआ है।
कम से कम दो घंटे दिन के प्रकाश में बिताएं डॉ. सक्सेना के मुताबिक, बच्चों के लिए बाहरी गतिविधियां बढ़ाने से मायोपिया का खतरा कम हो जाता है। प्रतिदिन कम से कम 2 घंटे बाहर दिन के प्रकाश में बिताने की सलाह दी जाती है।
कई अध्ययनों से पता चला है कि जो बच्चे दिन में 40 मिनट से लेकर 120 मिनट तक बाहर खेलकूद आदि गतिविधियां करते हैं उन्हें इस बीमारी का खतरा कम हो जाता है। स्क्रीन पर काम करने से ब्रेक लें। लंबे समय तक पढ़ने, लिखने या कंप्यूटर, स्मार्टफोन का उपयोग करने से मायोपिया का खतरा बढ़ सकता है।
एक घंटा ब्रेक जरूरी डॉक्टर टिटियाल ने कहा कि बच्चों की आंखें सुरक्षित रखने के लिए स्कूलों में प्रशिक्षण और दिशा-निर्देशों का पालन करने की जरूरत है। स्कूलों में बच्चों को एक घंटे का ब्रेक मिलना बेहद जरूरी है। दो घंटे से ज्यादा डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल बच्चे दिन में न करें।