उन्नाव
उन्नाव से राजेन्द्र कसेरा की रिपोर्ट बी.न्यूज़
- क्यों की जरूरत से ज्यादा रौशनी भी इंसान को अन्धा बना देती है।
मालिक के बनाए कायनात में इन्सानी फितूर ने तमाम तरह के दस्तूर कायम कर लिए हैं हालांकि सबके मकसद मालिक के सजदे में कीलें पढ़ने ही होते हैं लेकिन वहम में इन्सानियत को भूल कर रहम करना भूल जाते हैं।आजकल त्योहारों का महीना चल रहा है धर्म सम्प्रदाय मजहब में बटा मालिक के माटी के पुतलों ने अपने अलग अलग ईजाद किए तरीकों से पूजा अर्चना बन्धन अभिनन्दन सजदा कर रहे हैं कोई मन्दिर में सर झुका रहा है तो कोई मस्जिद में।
पर्दे की ओट से दुनिया बनाने वाला सारा इन्सानी करिश्मा देखकर हैरत में है कायनाती इन्तजाम कर्ता ने तो केवल इन्सान बनाकर मृत्यू लोक में भेजा था मगर स्वार्थ के वशीभूत कोई अवधूत का अनुगामी बन गया कोई अल्लाह की इबादत में मशगूल हो गया जीते जी सब कुछ अलग अलग मगर मौत के बाद सभी के रास्ते एक सबको मिट्टी में ही मिल जाना है किसी जलकर किसी को मिट्टी में दफन कर।
आजकल नवरात्र का महीना चल रहा है जिसमें मां भवानी आदिशक्ति दुर्गा के उपासना में श्रद्धाभाव लिए लोग भाव बिह्वाल है।वहीं रमजान का पवित्र माह भी साथ ही साथ चल रहा है अपने अपने तरीकों से लोग इबादत पूजा कर रहे हैं बस इन्सानियत के पूजा इबादत का समय निर्धारित नहीं है।लोग अकूत धन सम्पदा के अपनों के सुखी सुबिधा के लिए दिन रात अनैतिक कर्मों में लगे हुए हैं।
एक तरफ मालिक की बन्दगी दुसरी तरफ हर काम शर्मिन्दा का किए जा रहे हैं । सबको पता है साथ जाना कुछ भी नहीं है मगर माया के माया के महा विनासी लीला में फस कर सब कुछ भूल जाता है।गरीबों की आह मजलूमों की परवाह किसी को याद नहीं रहता ।
धर्म मजहब इन्सानियत का पाठ पढ़ाते हैं मगर वर्तमान में तो सब कुछ दिखावा हो गया।अरबों खरबों रुपये की सम्पत्ति मन्दिरो में जमा है बेसुमार दौलत मस्जिदों मदरसों के नाम पर लोग देते हैं ।मगर इन्सानियत को जिन्दा रखने गरीबों के दशा परिवर्तन मजलूमों की रहनुमाई में कोई शरीक नहीं होता।आखिर क्यों ।