उन्नाव
उन्नाव से राजेन्द्र कसेरा की रिपोर्ट बी.न्यूज़
- समस्त वेदों का सार आदिशक्ति माँ गायत्री है ।
- यथा मधु च पुष्पेभ्यो घृतं दुग्धाद्रसात्पय एवं हि सर्ववेदानाँ गायत्री सार मुच्यते व्यास
जिस प्रकार पुष्पों का सार मधु दूध का घृत रसों का सार दूध है। उसी प्रकार समस्त वेदों का सार गायत्री है।गायत्री के दो पक्ष हैं ज्ञान व विज्ञान। ब्राह्मी चेतना की महाशक्ति इन्हीं दो रूपों में प्रकट होती है। ज्ञान पक्ष को उच्च स्तरीय तत्वज्ञान की ब्रह्मविद्या की ऋतम्भरा की संज्ञा दी जा सकती है। इसका उपयोग आस्थाओं ओर आकांक्षाओं को उच्चस्तरीय बनाने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण के रूप में किया जा सकता है।
बौद्धिक उत्कृष्टता के साधन इसी आधार पर जुटते हैं।गायत्री का विज्ञान पक्ष उपासना व साधना की अनेकों प्रथाओं पद्धतियों के रूप में बिखरा पड़ा है। मोटे रूप से तो यह ऐसा लगता है मानों किसी देवी-देवता की अभ्यर्थना कर मनोकामना की मनुहार इसमें की जा रही हैं। किन्तु वास्तविकता ऐसी है नहीं। मानवी सत्ता के अन्तराल में इतनी महान संभावनाएँ और क्षमताएँ प्रसुप्त भरी पड़ी हैं कि उन्हें प्रकारान्तर से ब्रह्म चेतना की ट्रू कॉपी कहा जा सकता है।
अंतराल का सोया पड़ा रहना ही दरिद्रता है और उसकी जाग्रति में सम्पन्नता का महासागर लहलहाता देखा जा सकता है। जो उसे जगा लेते हैं। वे मनवाँछित फल पा लेते हैं। संपत्ति यश कीर्ति समर्थता दीर्घायुष्य नीरोगता सब इसी जागरण की फलश्रुति हैं। जो जगाने के बाद इन क्षमताओं को साथ व सुनियोजित कर लेते हैं। उन्हें महामानव की संज्ञा दी गयी है। ऐसे व्यक्ति सदैव ऐतिहासिक भूमिकाएँ निबाहते आए हैं।
स्वयं धन्य बने हैं व अपने संपर्क क्षेत्र के जनसमुदाय व वातावरण को उनने धन्य बनाया है।भगवती गायत्री का निष्कलंक प्रज्ञावतार अगले दिनों अपने त्रिपदा नाम के अनुरूप तीन धाराओं के प्रवाह के उभरने के रूप में होगा। ये हैं सरस्वती दुर्गा एवं लक्ष्मी। तीनों का सम्मिलित स्वरूप आद्यशक्ति का उद्भव और बहिरंग में नीतिमत्ता का उभार। सरस्वती बौद्धिकता की परिपक्वता के साथ कला-उल्लास का उभार लेकर अवतरित होगी।
यह सद्ज्ञान का स्वरूप है। दुर्गा महाकाली सामूहिकता का सहकारिता का अतिरिक्त विचार शीलता समय का प्रतिनिधित्व करेंगी। लक्ष्मी नैतिकता एवं एकता का प्रतीक है। जहाँ सद्ज्ञान व समर्थता हो वहाँ संपन्नता न आए ऐसा हो ही नहीं सकता। अत गायत्री महाशक्ति के अवतरण के साथ ही मनुष्य के दुखों का निवारण तो है ही वे सभी लक्ष्य जो भौतिक जगत में हर व्यक्ति का इष्ट बने हैं स्वत सिद्धि की दिशा में अग्रगामी होंगे। गायत्री अंत क्षेत्र की उत्कृष्टता व सुसंस्कारिता को जगाती है। उनका अवतरण अर्थात् नीति धर्म एवं अध्याय का अवतरण। वे वेदमाता कहलाती हैं।