मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश से सुरेश पटेल की रिपोर्ट बी न्यूज
हमें मनुष्य शरीर क्यों मिला है?हम मनुष्य हैं, ये देह हमको इसीलिए मिला है कि हम भगवान् की भक्ति करें। एक उद्देश्य है, दूसरा नहीं है।
बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥
भावार्थ:- बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है (कठिनता से मिलता है)। यह साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा है। इसे पाकर भी जिसने परलोक न बना लिया,॥
पेट पालने के लिए नहीं, विषय के लिए नहीं कि आँख से संसार देखो, कान से संसार सुनो, नासिका से संसार सूँघो. इन्द्रियों से संसार का विषय भोग करके और आनंद लो। ये तो कुत्ते, बिल्ली, गधे भी करते हैं. फिर तुम मनुष्य होकर के क्या विशेषता रही तुम्हारी?
एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥
नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥
भावार्थ:- हे भाई! इस शरीर के प्राप्त होने का फल विषयभोग नहीं है (इस जगत् के भोगों की तो बात ही क्या) स्वर्ग का भोग भी बहुत थोड़ा है और अंत में दुःख देने वाला है। अतः जो लोग मनुष्य शरीर पाकर विषयों में मन लगा देते हैं, वे मूर्ख अमृत को बदलकर विष ले लेते हैं॥
तो, हमारी यही विशेषता है कि हमको भगवान् ने ज्ञान दिया है, भगवान् की भक्ति करने के लिए. उसका सदुपयोग न करेंगे तो फिर दुरुपयोग भी नंबर एक होगा।
नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो॥
करनधार सदगुर दृढ़ नावा। दुर्लभ साज सुलभ करि पावा॥
भावार्थ:- यह मनुष्य का शरीर भवसागर (से तारने) के लिए बेड़ा (जहाज) है। मेरी कृपा ही अनुकूल वायु है। सद्गुरु इस मजबूत जहाज के कर्णधार (खेने वाले) हैं। इस प्रकार दुर्लभ (कठिनता से मिलने वाले) साधन सुलभ होकर (भगवत्कृपा से सहज ही) उसे प्राप्त हो गए हैं,॥
फिर पाप करेंगे और बड़े-बड़े पाप करेंगे. कुछ चोरी-चोरी करते हैं और कुछ छाती ठोंककर पाप करते हैं। सब पाप करेंगे, कोई नहीं बच सकता। एक सैकिण्ड को आपने मन भगवान से अलग किया, तो पाप ही करेंगे..
जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ।
सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ॥
भावार्थ:- जो मनुष्य ऐसे साधन पाकर भी भवसागर से न तरे, वह कृतघ्न और मंद बुद्धि है और आत्महत्या करने वाले की गति को प्राप्त होता है॥
नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही॥
नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी। ग्यान बिराग भगति सुभ देनी॥
भावार्थ:- मनुष्य शरीर के समान कोई शरीर नहीं है। चर-अचर सभी जीव उसकी याचना करते हैं। वह मनुष्य शरीर नरक, स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है तथा कल्याणकारी ज्ञान, वैराग्य और भक्ति को देने वाला है॥
सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर। होहिं बिषय रत मंद मंद तर॥
काँच किरिच बदलें ते लेहीं। कर ते डारि परस मनि देहीं॥
भावार्थ:-ऐसे मनुष्य शरीर को धारण (प्राप्त) करके भी जो लोग श्री हरि का भजन नहीं करते और नीच से भी नीच विषयों में अनुरक्त रहते हैं, वे पारसमणि को हाथ से फेंक देते हैं और बदले में काँच के टुकड़े ले लेते हैं॥