जानिए बरसाने में क्यों मनाई जाती है लट्ठमार होली, भगवान कृष्‍ण राधा रानी से होली खेलने बरसाने जाते हैं

बरसाना

बरसाना से राहुल की रिपोर्ट बी.न्यूज़

लट्ठमार होली बरसाना 2023: दिवाली की तरह होली भी ऐसा त्योहार है, जो पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन एक-दूसरे को रंग गुलाल लगाने का चलन है। भांति-भांति के पकवान बनते हैं, जिसे लोग अपने आसपड़ोस के लोगों के मिल-बांटकर खाते हैं। होली आने के कई दिनों पहले ही इसे मनाने की तैयारी शुरू हो जाती है। खासकर, बच्चे होलिका दहन के घास फूस और लकड़ियां जुटाना शुरू कर देते हैं।

दिवाली की तरह होली भी ऐसा त्योहार है, जो पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन एक-दूसरे को रंग गुलाल लगाने का चलन है। भांति-भांति के पकवान बनते हैं, जिसे लोग अपने आसपड़ोस के लोगों के मिल-बांटकर खाते हैं। होली आने के कई दिनों पहले ही इसे मनाने की तैयारी शुरू हो जाती है। खासकर, बच्चे होलिका दहन के घास फूस और लकड़ियां जुटाना शुरू कर देते हैं। भारत एकता में विविधता वाला देश है। यह विविधता होली त्योहार मनाने के तरीके में भी दिखाई देती है। सबसे मशहूर है, बरसाने की लट्ठमार होली।

यह यूपी में मुथुरा के पास के शहरों बरसाना और नंदगांव में खेली जाती है। यहां हर देश-विदेश से भारी संख्या में लोग जुटते हैं। होली के दिन बरसाने की महिलाएं पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं और पुरुष इससे बचते हैं।

बरसाना लट्ठमार होली के पीछे मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण राधा रानी को देखने के लिए बरसाने जाते हैं। इसके बाद कृष्ण और ग्वाले राधा और उनकी सखियों को छेड़खानी करने लगते हैं। इस पर श्रीराधा और उनकी सखियां हाथ में छड़ी लेकर कान्हा और उनके ग्वालों के पीछे भागती हैं। तब से ही लठमार होली की परंपरा चली आ रही है। आज भी बरसाने और नंदगांव में इसी परंपरा को निभाया जाता है। लोग मानते हैं कि होली के दिन कन्हैया और राधारानी भी बरसाने के इस रंग में रंग जाते हैं।

यूं तो ब्रज में होली का महोत्सव डेढ़ माह से भी लंबे समय तक मनाया जाता है। क्योंकि ब्रज के हर तीर्थस्थल की अलग परंपरा है और होली मनाने का भी तरीका एक-दूसरे से अलग है। लेकिन बरसाने और नंदगाव की लठमार होली की परंपरा इनको सबको अलग बनाती है। दोनों जगहों की गोपियां लाठियां बरसाने में थक न जाएं इसके लिए दूध-मेवा खाकर अपनी ताक बढ़ाती हैं वहीं ग्वाले भी ढालों को को दुरुस्त करने में जुट जाते हैं। जो जितनी अच्छी लाठी चला लेता है, उसे बाद में पुरस्कार भी दिया जाता है।

इस दिन महिलाएं लोक गीत गाते हुए रंग डालने के लिए आए पुरुषों को पीटती हैं। पुरुष खुशी-खुशी लाठियां सहन भी करते हैं। येइस दौरान लोगों का जोश देखते ही बनता है। ये सारा उत्सव बरसाना के राधा रानी मंदिर के विशाल परिसर में होता है, जो राधा जी को समर्पित देश का इकलौता मंदिर है।

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