झारखण्ड
झारखण्ड से अभिषेक सिंह की रिपोर्ट बी.न्यूज़
भगवत ज्ञान के श्रवण मात्र से ही प्राणियों को सभी पांचों से छुटकारा ही नहीं बल्कि उन्हें अंत में मौक्ष की प्राप्ति होती है। उक्त अमृत वाणी वृंदावन से पधारे सुश्री बसुधा जी दुमका जिला के रामगढ़ प्रखंड अंतर्गत ठाडी हाट बाजार के समीप विशाल मैदान में सात दिनों तक चलने वाले श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में कथा के दुसरे दिन मंगलवार को को बोल रही थी।
उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि
लोग मैं और मेरे की फेर में पूरा जीवन नष्ट कर देते हैं|अपने उत्पत्ति के कारण को भूल कर केवल भौतिक सुख के लिए पूरा जीवन गवां देते हैं. शरीर और सुख-सुविधा ही आज सर्वोपरि हो गया है|बात अगर राष्ट्र की आ जाए तो अपने कुछ निजी स्वार्थ को छोड़कर राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए|शरीर और खानपान की शुद्धता पर चर्चा करते हुए कहा कि आजकल लोग धर्म से ज्यादा महत्व शरीर को देने लगे हैं|
कहते हैं शरीर है तो सब है, पर यह विचार सर्वथा अनुचित है, क्योंकि शरीर नश्वर है और धर्म अमिट है|उन्होंने एक दृष्टांत देते हुए बताया कि दक्षिण के एक परम पूज्य संत हैं जी आर स्वामी| जिन्होंने अपने शरीर को जैसा चाहे परिवर्तित करके रखे|और ईश्वर की प्राप्ति ईश्वर का दर्शन अपना अंतिम लक्ष्य माना|वे जहां जन्म लिए वहां ठंड होता ही नहीं|जब उन्हें ईश्वर उपासना की इच्छा हुई तो वे वृंदावन आए और यमुना जी मे तीन बार स्नान कर त्रिकाल संध्या करते थे|इसके बाद वे हरिद्वार गए और वहां भी गंगाजी में तीन बार स्नान कर संध्या करते रहे|जब उन्हें बद्रिकाश्रम में जाकर उपासना करने की इच्छा हुई तो बद्रीनाथ धाम जाकर उन्होंने बर्फीले ठंडे पानी में तीन बार स्नान कर भगवत आराधना करने लगे|
उन्होंने बताया शरीर को जैसा चाहो वैसा रख सकते हो और आज लोग शरीर के अनुसार धर्म का पालन कर रहे हैं|खानपान का मन और चित्त से विशेष संबंध है|जैसा खानपान होता है मन में वैसा ही विचार जन्म लेते हैं| आज पूरा देश और विश्व इन्ही सब खानपान की विसंगति को भोग रहे हैं|आज राष्ट्रवाद की बात करना भगवाकरण कहे जाने लगा है| ईश्वर प्राप्ति के लिए अनेक उपायों की चर्चा करते हुए वसुधा श्री जी ने बताया कि पुराने अध्यात्म योग विज्ञान आज के भौतिक विज्ञान से सैकड़ों गुना आगे है साथ ही आज की कथा में महर्षि कर्दम ने अपने योग विद्या से एक ऐसे विमान का निर्माण किए जो सर्वसुविधा युक्त था|ऐसे विमान जो दुर्घटना से मुक्त हो| जिसमें सवार यात्री कभी बीमार ना पड़े और इच्छानुसार वस्तु की प्राप्ति होती थी, और आज विज्ञान कितना भी विकास कर ले ये संभव नहीं|वसुधा श्री जी ने वक्ताओं पर चर्चा करते हुए कहा कि आज वक्ता वैदिक धर्म का पालन नहीं कर रहे हैं|इसीलिए स्रोताओं के मन मे वैदिक धर्म की स्थापना नही कर पा रहे हैं|जिसका परिणाम यह हो रहा है कि अनेक धार्मिक अनुष्ठान के बाद भी विपदा में कमी नहीं हो रहा है|
भले ही स्वप्न को नस्वर कहा जाता है लेकिन अगर स्वप्न में अगर ईश्वर या गुरु का दर्शन होने लगे तो जागृत अवस्था मे इसके अनेक बार परिणाम देखने को मिले हैं|उन्होंने शरीर का उपयोग ईश्वर प्राप्ति के माध्यम के रूप में बताया|इससे भक्ति मार्ग, ज्ञान मार्ग पर चलकर ईश्वर प्राप्त किया जा सकता है. इन मार्गों की अनेक चर्चाएं उन्होंने आज की कथा में सुनायी|