प्रतापगढ़
प्रतापगढ़ जनपद से बी.न्यूज़ की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश में सरकार निशुल्क शिक्षा के माध्यम से बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रही है। सरकार का यह कहना भी है कि प्राथमिक शिक्षा प्रत्येक बच्चों का मूल अधिकार है। इस अधिकार से कोई भी बच्चा वंचित न रहे पर सरकारी स्कूलों की दशा दिन-प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है।
ऐसे में गरीब परिवार के बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों की तरफ रुख कर रहे हैं पर प्राइवेट स्कूल संचालक अभिभावकों की जेब काटने में लगे हुए हैं। ग्रीष्मावकाश के बाद स्कूल खुलते ही बच्चों के लिए उनके यहां भारी भरकम पैकेज तैयार रखा है जिसका वहन करना गरीब व असहाय अभिभावकों के खर्चे से इतर है लेकिन प्रतिस्पर्धा के इस दौर में बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अभिभावक पेट की रोटी काट कर बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने की जुगत में लगे हुए हैं।
कुछ स्कूल तो बाहरी दुकानों पर सेटिंग कर किताबों के लागत मूल्य पर 50 से 60 प्रतिशत वापसी लेने की पॉलिसी चला रखे हैं।उनके स्कूल की किताबें केवल उसी सेटिंग की दुकान पर ही उपलब्ध होगी अन्यत्र आप कहीं भी उसे खरीद नहीं सकते। और बचे हुए कुछ विद्यालय तो यह सारा सिस्टम अपने स्कूल में ही बना रखा है।
स्कूल में ही ड्रेस,पेन,पेंसिल, कॉपी,किताब आदि सामान वहीं से प्राप्त करना अनिवार्य होता है।किताबें भी इतनी संख्या में लेनी है कि बच्चों के बस्ते इतने वजनी हो जाते हैं कि बच्चा अपने बस्ते का बोझ उठा ही नहीं सकता है लेकिन किताबें खरीदना बच्चों के लिए अनिवार्य है।यह सब इसलिए होता है क्योंकि जितनी संख्या में किताबें होंगी उतना ही बचत होगा।
किसी किसी विद्यालय में कक्षा एक में पढ़ने वाले बच्चों को लगभग 8 से 9 किताबें खरीदनी पड़ती है जबकि सरकार रटने वाली शिक्षा को कमकर रचनात्मक शिक्षा पर जोर दे रही है। यदि एक भी सामान लेने से अभिभावक मना कर देता है तो दुकानदार पूरा सामान वापस लेकर संबंधित स्कूल में बच्चों की शिकायत भी कर देते हैं।
मजबूरी में अभिभावकों को अपनी गाढ़ी कमाई से मनमाने मूल्य पर अपने बच्चों के लिए खरीदते हैं।जिम्मेदार भी इन स्कूलों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही नही उठाते जिसके चलते इनके हौसले बुलंद हैं।