सुल्तानपुर
सुल्तानपुर से सुशान्त सिंह की रिपोर्ट बी न्यूज़
नहीं जनसंख्या नियोजन जब इंसान कुछ करने की ठान ले तो कोई काम मुश्किलहोता है। पारंपरिक खेती बाड़ी जबघाटे का सौदा बनने लगी व पैदावारघटने लगी तो मायंग गांव के प्रदीपसिंह ने अमरूद का बाग लगाने कीठानी। शुरुआत में साथी किसानों ने भ्रम फैलाया लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी।
आज अमरूद के 15 बीघा बागसे एक लाख रुपये की आमदनी कर रहे हैं। उन्होंने मुनाफा देख इसकादायरा बढ़ा तीस बीघा 15 बीघा बाग से एक लाख रुपये धनपतगंज के मायंग में अमरूद की फसल की देखरेख करते प्रदीप सिंह दाएं जागरण प्रतिवर्ष हो रहा लाखों का मुनाफा,किसानों को भी कर रहे पारंगततक हो रही आमदनी कर दिया।
अन्य जिलों के किसान अब इनसे 01 अमरूद के पेड़ की आमतौर 20 से 25 किलो एक पेड़ से तक से.निकलतादस साल होती है पेड़ की उम्र प्रदीपबताते हैं कि आमतौर पर एकअमरूद के पेंड़ की उम्र 10 वर्ष तकही है। उसके बाद या तो पेड़ सूखनेलगता है या फल में पूरी तरह से गिरावट आ जाती है। उन्होंने बताया कि इस अमरूद की खेती में जैविक खादों का उपयोग बहुत लाभदायक है।
निश्चित रूप से पारंपरिक खेती से यह अधिक लाभप्रद है। होती है पानी की बचतः वह कहते हैं कि धान व गेहूं की खेती पानी ज्यादा लगता है। इससे जलस्तर घटता जा रहा था भूगर्भ जल स्तर को बचाने के लिए बागवानी की ओर रुचि पैदा हुई। अमरूद का बाग लगाकर अन्य किसान भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं।
धनपतगंज के मायंग गांव में प्रदीप सिंह की अमरूद बाग जागरण आंध्रा किंग अमरूद किया रोपित उन्होंने अपने बाग में आंध्रा किंग अमरूद की किस्म के पौधे लगाए हैं। बताते हैं कि इसका स्वाद और गुणवत्ता लाजवाब है।
कहते हैं कि उन्होंने तीस बीघे की बाग में 9000 पौधे लगाए हुए हैं। उन्होंने बताया कि एक पेड़ से करीब 20 से 25 किलो फल निकलता है। इसमें करीब 12 लाख रुपये की लागत आई, फल आने शुरू हो गए हैं। इस बार अच्छे मुनाफे की उम्मीद है।
यहां करते है अमरूद सप्लाई जिला मुख्यालय समेत आसपास जिलों के किसान सीधे उनके पास आते हैं और तत्काल अमरूद तोड़वाकर ले जाते हैं। मौके पर ही इसका भुगतान कर देते हैं। इसके लिए उन्हें उद्यान विभाग की ओर से उत्कृष्ट किसान के रूप में सम्मानित भी किया जा चुका है