मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश से सुरेश पटेल की रिपोर्ट बी न्यूज
- मुख्य यजमान:-पंडित वृन्दावन दुबे/श्रीमति सुनीता दुबे (खड़ेरी)
- राजा परीक्षित को था मृत्यु का भय, शुकदेव ने सुनाई झोपड़ी की यह कथा।
राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाते हुए शुकदेव को छह दिन बीत गए और उनकी मृत्यु में बस एक दिन शेष रह गया। लेकिन राजा का शोक और मृत्यु का भय कम नहीं हुआ। तब शुकदेवजी ने राजा को एक कथा सुनाई – ‘एक राजा जंगल में शिकार खेलने गया और रास्ता भटक गया।
रात होने पर वह आसरा ढूंढ़ने लगा। उसे एक झोपड़ी दिखी जिसमें एक बीमार बहेलिया रहता था। उसने झोपड़ी में ही एक ओर मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था और अपने खाने का सामान झोपड़ी की छत पर टांग रखा था। उसे देखकर राजा पहले तो ठिठका, पर कोई और आश्रय न देख उसने बहेलिए से झोपड़ी में रातभर ठहरा लेने की प्रार्थना की।
बहेलिया बोला – ‘मैं राहगीरों को अकसर ठहराता रहा हूं। लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे झोपड़ी छोड़ना ही नहीं चाहते। इसलिए आपको नहीं ठहरा सकता।’ राजा ने उसे वचन दिया कि वह ऐसा नहीं करेगा। सुबह उठते-उठते उस झोपड़ी की गंध में राजा ऐसा रच-बस गया कि वहीं रहने की बात सोचने लगा। इस पर उसकी बहेलिए से कलह भी हुई। वह झोपड़ी छोड़ने में भारी कष्ट और शोक का अनुभव करने लगा।’
कथा सुनाकर शुकदेव ने परीक्षित से पूछा- ‘क्या उस राजा के लिए यह झंझट उचित था?’ परीक्षित ने कहा- ‘वह तो बड़ा मूर्ख था, जो अपना राज-काज भूलकर दिए हुए वचन को तोड़ना चाहता था। वह राजा कौन था?’
तब शुकदेव ने कहा – ‘परीक्षित, वह तुम स्वयं हो। इस मल-मूत्र की कोठरी देह में तुम्हारी आत्मा की अवधि पूरी हो गई। अब इसे दूसरे लोक जाना है। पर तुम झंझट फैला रहे हो। क्या यह उचित है?’ यह सुनकर परीक्षित ने मृत्यु के भय को भुलाते हुए मानसिक रूप से निर्वाण की तैयारी कर ली और अंतिम दिन का कथा-श्रवण पूरे मन से किया।