बिखरा वजूद टूटे हुए ख्वाब सुलगती तन्हाईयां कितनी हसीन तोहफे दे जाती है अधूरी जिन्दगी |

उन्नाव

उन्नाव से राजेन्द्र कसेरा की रिपोर्ट बी.न्यूज़

  • बिखरा वजूद टूटे हुए ख्वाब सुलगती तन्हाईयां,कितनी हसीन तोहफे दे जाती है अधूरी जिन्दगी

अब जब कुछ नहीं रहा पास तो रख ली तन्हाई सम्हाल कर मैंने ये वो सल्तनत है जिसके बादशाह भी हम है वजीर भी हम है और इस मतलब परस्त दुनियां में फकीर भी हम है वक्त का खेल है साहब कभी चाहत की बस्ती के बादशाह हुआ करते थे आज विरान बगीचे का माली बन कर रह गया हूं फिर भी अपनी छोटी सी जिन्दगी में इतना तो कर जायेंगे किसी की आंखों में तमाम उम्र जियेगे  किसी के दिल में चुपचाप मर जायेगे इस जहां के बदलते रिती रिवाज को देखकर अपनी सोच को बदलना ही होगा!मत करो किसी से उम्मीद।

हर किसी की अपनी दुनियां है। कोई कितना भी अपना है पहले अपना ही देखता है। आया है सो जायेगा राजा रंक फकीर!किसको कितना क्या मिला ये अपनी अपनी तकदीर! इस स्वार्थ की बस्ती में भौतिक सुख कि चाहत ने जिस उन्मादी वातावरण का आवरण तैयार किया है उसका शानिध्य पाकर हर आदमी के दिल मे अहंकार दिन रात बढ़ रहा है!और इसी का परिणाम है पुरातन परम्परा, संस्कृति के विलोपन के साथ ही अधोपतन के रास्ते पर चल निकला है मतलबी इंसान! अहंकार मत पालिए जनाब  वक्त के समन्दर में न जाने कितने सिकन्दर डूब गए  जब घमंड तकब्बुर आ जाए तो एक बार श्मशान कब्रिस्तान का एक चक्कर जरूर लगा लेना भाई  तुम्हें दिखाई देगा तुमसे बेहतरीन व ताकतवर लोग वहां मिट्टी में मिले पड़े हैं न शोहरत न रूतबा राख बनी ज़िन्दगी का उड़ता हुआ गुब्बार।

समय के साथ घर बदल जाए या रिश्ते बदल जाए कोई ग़म नहीं! लेकिन सबसे ज्यादा दुःख तब होता है जब कोई अपना बदल जाए। जिंदगी भर सुख कमाकर दरवाजे से घर में लाने की कोशिश करते रहे। पता ही नहीं चला कब खिड़कियों से उम्र बाहर निकल गई!गुजरे लम्हों की याद कितनी खूबसूरत होती है ना लडती है ना झगड़ती है!बस खामोशी से किसी का नाम लेकर दिल में उतर जाया करती है।और उन्हीं यादों के सहारे ग़म अश्क बनकर जब सारी दुनियां सोती है तब चेहरा भिगोता है।घायल दिल बार बार अपनों के चोट से टूटता है।बिखरता है ।कराहता है!सोचते सोचते थक जाता है।

कभी खुद से! कभी किस्मत से! कभी भविष्य के सुखद सपनों से। हकीकत के दहलीज पर यह दर्द भरे अल्फाज़ आज हर गली, हर मोड़, हर नुक्कड़,पर खुद के तिरस्कार के दर्द से बिल बिलाते लोगों की जबानी सुनने को कहीं भी मिल जा रही है।समय के समन्दर में हलचल है। परिवेश बदल रहा पल पल है।लोगों के आचार बिचार संस्कार तेजी से बदल रहे हैं।टूटते रिश्तों तथा छूटते सम्बन्धों में उम्र का आखरी सफर अपनों के आजीवन अनुबन्धो को भी नकार रहा है। जिस ज़िन्दगी का आगाज हंसते मुस्कराते ख्वाबों की बस्ती बसाते हुआ। उसी खुशहाल जीवन के दोपहरी में ही हमसफ़र आधे राह में ही साथ छोड़कर मुंह मोड़कर अलविदा कह जाए तो जीवन का हर लम्हा जहर बन जाता है।

फिर भी आये है इस जहां में तो जीना ही पड़ेगा ज़िन्दगी जहर है तो पीना ही पड़ेगा। अधूरी जिन्दगी का संताप झेलता, जिम्मेदारियों के बोझ को लिए अपनी खुशहाली को दरकिनार कर दिन रात कड़ी मशक्कत मेहनत के साथ ही साथ जब ज़िन्दगी की शाम करीब आने लगती है तब उम्र भी एहसास कराने लगती है कि अब आखरी सफर के तन्हाई भरे हाईवे पर जिन्दगी की गाड़ी का सन्तुलन बिगड़ने लगा है।कभी भी अनहोनी सम्भव है।आखरी सफर में हर तरफ बीरानी है। तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला! का दस्तूर तो सदियों से कायम है।दूर दूर तक कोई नहीं है।सब कुछ पीछे छूट चुका है।

अकेला ही चलना है। वहां तक जहां से कोई वापस नहीं आता!भरोशे की खेती में स्वार्थ का रोग लग चुका है। सामाजिक धरातल पर सम्बन्धों के झरने से निकला परिवर्तन का पानी प्रदुषित हो चला है । खुद का भविष्य इस थकी हारी जिन्दगी में बोझ बन गया सोच बदलिए। सब कुछ यहीं रह जायेगा‌। कुछ साथ नहीं जायेगा।मोह और विछोह के संयोग में जब तक फंसे रहेंगे तब तक हर कोई अपना ही नजर आयेगा।

महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही बताया यहां तेरा कोई नहीं!कौन अपना है कौन पराया है। न कुछ लेकर आए हैं न लेकर जाओगे फिर किस बात का शौक। आत्मा अजर अमर है कभी नहीं मरती केवल शरीर बदलती है। खुद को पहचानिए। कोई नहीं अपना।सबकुछ यही छोड़कर जाना है कुछ भी साथ नहीं जायेगा।जायेगा तो बस कर्म और धर्म। स्वार्थी जगत में आप का तभी तक आवभगत है जब तक स्वार्थ पूरा हो रहा है वर्ना–अनमोल होकर भी बिना मोल हो जायेंगे ।

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